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पापमोचनी एकादशी व्रत कथा।

इस वर्ष पापमोचनी एकादशी व्रत 19 मार्च 2020  को मनाई जाएगी।

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पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

भविष्योत्तर पुराणमें भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवादों में पापमोचनी एकादशी का वर्णन आता है ।

एक बार युधिष्ठिर महाराज भगवान् श्रीकृष्ण को कहने लगे  हे केसव !


आमलकी एकादशी के वर्णन के पश्चात चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आनेवाली पापमोचनी एकादशी का कृपया कथन करें ।


भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा , " हे राजन !

बहुत वर्ष पहले लोमश ऋषिने राजा मान्धाता को इस पापमोचनी एकादशी की महिमा सुनायी थी ।इस एकादशी व्रत के पालन से मनुष्य सब पापों से मुक्त होता है और जीवन के अनेक प्रकार के बुरे अनुभव से मुक्त होकर अष्टसिद्धी प्राप्त करता है । 

 लोमश ऋषी ने कहा

 बहुत पहले देवाताओं का कोषाध्यक्ष कुबेर का अतिशय सुंदर चैतरथ नामक एक मनोहर उपवन था । विशेष करके पूरे वर्षभर वसंत ऋतु के जैसा उस उपवन का वातावरण था 

इसीलिए स्वर्गकन्या , किन्नर , अप्सरा और गंधर्व हमेशा विहार के लिए वहाँ आते थे । विशेष करके इन्द्र और अन्य देवता भी वहाँ आकर आनंद और प्रेमका आदान - प्रदान करथे थे ।

उसी उपवन में शिवजीके परमभक्त मेधावी नामक ऋषि तपस्या करते थे जिनकी तपस्य अनेक प्रकारसे भंग करने का प्रयत्न स्वर्गकी अप्सराएँ करती थी । मंजुघोषा अप्सरा ने उनका तपोभंग करने का निश्चय किया । 

उसने ऋषि के आश्रम के समीप ही कुटिया बांधी और बहुत ही मधुर स्वरमें गाना गाने लगी उसी समय शिवजीका शत्रु कामदेव भी शिवभक्त मेधावी ऋषि को जीतने का प्रयत्न करने लगे । शिवजीने कामदेव को एकबार भस्म किया था उसीका प्रतिशोध लेने के लिए कामदेवने ऋषिके शरीरमें प्रवेश किया ।

शुभ्र उपवीत धारण किए हए मेधावी ऋषि च्यवन महर्षीके आश्रम में वास करते थे । कामदेव के शरीर में प्रवेश से मेधावी ऋषि भी कामदेव जैसे ही सुंदर दिखने लगे । उसी वक्त कामासक्त मंजुघोष उनके सामने आईमेधावी ऋषि भी काम से घायल हो गए । उन्हें शिवजी की उपासना का विस्मरण हुआ और स्त्री संग मे पूरी तरह मग्न रहे ।

स्त्री - संग में उन्हें दिन - रात का भी विस्मरण हो गया । इस प्रकार अनेक वर्ष मेधावी ऋषीने काम क्रीडामें बिताए । उसके पश्चात मंजुघोषने जाना कि मेधावी ऋषिका पतन हो चुका है और उसे अब स्वर्ग लौटना चाहिए ।

प्रणय में मग्न ऋषीको वह कहने लगी , 

 हे ऋषीवर ! 

कृपया मुझे स्वर्गलोक में लौटने की अनुमति दीजिए । उसपर मेधावी ऋषीने उत्तर दिया हे सुंदरी !

आज संध्या को तुम मेरे पास आयी हो , आज रात यहाँ पर रहकर सुबह तुम लौट जाना । " मंजुघोषा इस तरह और कुछ वर्ष वहाँ रही जो ५७ वर्ष ९ महिने ३ दिन का काल था , परंतु ऋषि के लिए यह काल केवल अर्धरात्रि समान था । पुनः स्वर्ग जाने की अनुमति लेनेपर ऋषि ने कहा 

हे सुंदरी ! अब प्रात : हो रही है , मेरी प्रात : विधी के पश्चात तुम जाना ।" तभी अप्सरा हसते हुए कहने लगी ।“ हे ऋषिवर !

 प्रात : विधी को आपको कितना समय लगेगा ? अभी तक आपको तृप्ति नही आई ? 

मेरे संग में आपने कितने वर्ष गुजारे है ? इसलिए कृपया समय का ध्यान करें ।ये शब्द सुनते ही मेधावी ऋषीने वर्षोंकी गणना की और कहाअरेरे ! हे सुंदरी ! मैने अपने जीवनके ५७ वर्ष व्यर्थ गवा दिए । तुमने मेरे जीवन और तपस्या इन दोनोंका नाश किया । 

 ऋषीके आँखो में आंसू आए और उन्होंने मंजुघोष को शाप दिया , " हे दुष्टे ! तुम्हे धिक्कार है !

 तुमने मेरे साथ चुडैल जैसा व्यवहार किया है , इसलिए तुम चुडैल बनो । ऋषीसे शाप मिलने के बाद मंजुघोषा ने कहा  हे द्विजवर ! 

कृपया ये कठोर शाप आप वापस लीजीए ।आप बहुत समय हमारे साथ रहे ।

 हे स्वामी ! कृपया दया कीजिए । इसपर मेधावी ऋषी कहने लगे , " हे देवी ! 

मै अब क्या करूँ ? तुमने मेरी तपोशक्ति तथा तपोधन का नाश किया है । फिर भी इस शाप से मुक्त होने का उपाय सुनो । चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में जो पापमोचनी एकादशी आती है उस दिन इस एकादशी व्रतका कठोर पालन करनेसे इस पिशाच्च योनी से तुम्हे मुक्ति मिलेगी ।

इतना कहकर मेधावी ऋषी अपने पिता च्यवन ऋषि आश्रम लौट आए । अपने पतित पुत्र को देखकर च्यवन ऋषीकों बहुत दुःख हुआ । वे कहने लगेहे पुत्र ! तुमने ये क्या किया ? एक स्त्री के लिए अपनी तपस्या नष्ट की । अपना ही नाश कर लिया ?  उसपर मेधावी ऋषीने कहा 

 मैंने दुर्भाग्यसे एक अप्सरा का संग करके बहुत बड़ा पातक किया । कृपा करके इस पापका चोग्य प्रायश्चित बताएँ । " पश्चातापदग्ध पुत्र के शब्द सुनने के बाद च्यवन महर्षी ने कहा ,

 चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी के व्रत पालन से तुम पापामुक्त हो जाओगे । उत्साह और कठोरता से मेधावी ऋषीने उस व्रतका पालन किया जिसके प्रभावसे वे सभी पापोंसे मुक्त हुएमंजुघोषको भी इस व्रत के पालन करने से अपने पूर्वरूप की प्राप्ति हो गई जिससे वह स्वर्गलोक चली गई ।

Ekadshi-vart-kathaयह कथा कहने के पश्चात लोमश ऋषीने मान्धाता राजाको कहा हे प्रिय राजन ! केवल इस व्रत पालन से सभी पाप नष्ट हो जाते है । इस एकादशी के महात्म्य पढ़नेसे अथवा सुननेसे हजार गाय दान करनेका पुण्य प्राप्त होता है । इस एकादशी व्रत का पालन करने से अनेक पापोंसे जैसे कि भ्रूणहत्या , ब्रह्महत्या , मद्यपान , परस्त्रीसंग , गुरुपत्नीसंग इनका नाश हो जाता है । 



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