RECENT POSTS

क्या साबूदाना खाना मांसाहार होता है


क्या साबूदाना खाना माँसाहार होता है ?


SABUDANA




क्या साबूदाना खाना माँसाहार होता है ? ,क्या इसे व्रत त्योहार आदि में खाया जा सकता हैं ? 

आइये जान लेते हैं साबूदाने की पूरी कहानी....


साबूदाना एक खाद्य पदार्थ है। यह छोटे-छोटे मोती की तरह सफ़ेद और गोल होते हैं। यह सैगो पाम नामक पेड़ के तने के गूदे से बनता है। सागो, ताड़ की तरह का एक पौधा होता है। ये मूलरूप से पूर्वी अफ़्रीका का पौधा है। पकने के बाद यह अपादर्शी से हल्का पारदर्शी, नर्म और स्पंजी हो जाता है।


आम तौर पर भारत में हिंदी में साबुदाना  बंगाली में  Tapioca globule  या  sagu गुजराती में ' sabudana और मराठी में साबुदाना  तमिल में Javvarisi  मलयालम में 'Kappa Sagu' कन्नड़ में  Sabbakki  तेलुगु में  Saggubeeyam   ऊर्दु में  sagudan कहा जाता है।

यह कार्बोहाइड्रेट और कैल्शियम और विटामिन-सी की पर्याप्त राशि वाला एक बहुत ही पौष्टिक उत्पाद है।

साबूदाने की जो निर्माण प्रक्रिया है जो औद्योगिक पृष्ठभूमि है वो सब आज में आपको बताऊंगा उसके निर्माण विधि क्या होती है?

दोस्तों सबसे पहले निर्माण में कच्चा माल  जिसका वानस्पतिक नाम टेपिओका-सागो है। यह सागो पाम नामक पौधे की जड़ों के गूदे से तैयार किया जाता है ।विश्व के अलग-अलग हिस्सों में अलग अलग नाम से जाना जाता हैं हिंदी में साबूदाने को जमीकंद कहते है।  यह दक्षिण अमेरिका यानी साउथ अमेरिका का पौधा है जिसे पुर्तगाली व्यापारी अमेरिका से अफ़्रीका ले गए और वहां से 19वीं सदी में ये भारत पहुंचा था।
केरल तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इसकी ज्यादा खेती मिलती है। इसके छिलके में हल्की मात्रा में जहरीला रसायन होता है। साइनोजेनिक ग्लाइकोसाइड इसलिए जमीन से निकलने के बाद ही इसे तुरंत उत्पादन प्रक्रिया में लेना पड़ता है नहीं तो यह तुरंत बिगड़ जाता है ।
 इसकी फसल करीब 9 से 10 महीने में तैयार होती है। इस को उबालकर छिलका उतारकर अतिरिक्त फसल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर धूप में सुखाकर स्टोर किया जाता है। वही  खेतो से इसे दक्षिणी राज्यों की मंडियों में बिकने के लिए लाया जाता  है। 
जिसको  हम बोलचाल की भाषा में हम अरारोट कहते हैं शैलम शहर में सर्वप्रथम इसका ओधगिक उत्पादन इसी फसल से चालू हुआ।
how-to-made-sabudana


इसको धूप में थोड़ा सूखा कर इसके छिलके उतार दिए जाते हैं और इसका रस निकाल कर धूप में सूखाया जाता है। सूखने के बाद इसका स्टार्च बनता हैं,स्टार्च उधोगों के साथ-साथ यह जानकारी हुई कि इसके दूध की गोली बनाकर हल्का सा धूप में सुखा दिया जाए तो यह साबूदाना बनता है और इसमें  वे सभी गुण होते हैं जो विदेशों से आयातित पामसाबू में होते हैं।

 इस तरह से भारत मे साबूदाना का निर्माण शुरू हुआ और मांग बढ़ने के साथ-साथ शैलम शहर के आसपास कंद की जो फार्मइंग है या जो उसकी मैन्युफैक्चरिंग है बहुत तेजी से शुरू हुईं ।भारत के बाहर थाईलैंड , वियेतनाम, चाइना आदि  देसो में भी स्टार्ट साबूदाना बनता है लेकिन वहां  प्राय छिलके के साथ बताना बनता है।

चलए आपको बता दूं की इंडिया में किस तरह से बनाया जाता है साबूदाना ?

इसके बाद आप खुद डिसाइड कर लें कि यह मांसाहारी है या शाकाहारी,

sabudana

खेतों से सीधे आए हुए कंद को पानी से धो के 6 से 8 इंच के टुकड़ों में काट कर वहां से कंद को फीलिंग करने की मशीन में डाला जाता है और छीला हुआ कंद अलग निकाला जाता है और फिर पानी से अच्छे से धोया जाता है।
पानी के साथ क्रशिंग मशीन में पीसकर इसका दूध निकाला जाता है और फिर इस रस को अलग-अलग छलनी में निकाला जाता है। ताकि जितने भी रेसे हैं दूध से अलग अलग हो जाए।जो इसका वेस्ट निकलता हैं उसे सूखने पर पशु खाद्य की तरह काम में लाया जाता है, जिसे लोग लोकल लैंग्वेज में तिपि बोलते हैं।

 छना हुआ अतिरिक्त पानी चार से 6 घंटे में अपने आप उ
पर आ जाता है। जिसको बाहर निकाल दिया जाता है और कंद का दूध जो होता है वह नीचे के की तरफ जम जाता है जिसमें 35% नमी होती है। जमें हुए कंद के दूध को फिर से एक टंकी में डालकर अच्छी तरह प्रेशर दे करके फेंटा जाता है ताकि कंद का दूध पूरी तरह साफ हो जाए और कंद के रस का रंग में दूध जैसा हो जाए । 

जो सामान्य फैक्ट्री है आज भी सिर्फ पानी से ही प्रेशर देकर इसे धोती होती है जबकि जो मोर्डन फैक्ट्री है वो साबूदाने को सबसे ज्यादा सफेद करने के लिए अलग-अलग रसायन डालकर उसे सफेद करती हैं , जमे हुए कंद के टुकडो को तोड़ कर  पाउडरिंग मशीन में चुरा करते हैं। चुरा हल्का-हल्का नम होता है। फिर इसको साइजिंग मशीन में डालकर वांछित साइज के गोल दाने बनाए जाते हैं। 
यह बने हुए कच्चे दाने बड़ी भट्टी पर रखे गर्म  तवे पर हल्का सा नारियल का तेल लगाकर उस पर सेक लिए जाते हैं ।कुछ फैक्टरीयो में इसे  रोस्टर रायर मसीन  मशीन के द्वारा इसको सुखाया जाता है तलने वाले साबूदाने जो नायलॉन साबूदाने होते हैं उन को बड़ी-बड़ी मेटल ग्रे में रखकर बॉयलर द्वारा भाप से सजाया जाता है और फिर हवा में ठंडा किया जाता है। इस तरह से साबूदाने को अच्छी धूप में बड़े-बड़े प्लेटफार्म पर फैलाकर सुखाया जाता है जितनी अच्छी  धूप होती है तैयार साबूदाने की सफेद और चमक उतनी ही बढ़ जाती है और नमी कम होने के साथ-साथ गुणवत्ता भी बढ़ती है

 बारिश में  साबूदाना काला पड़ जाता है इसलिए जो ट्रांसपरेंसी सीट को इसके ऊपर डाल के इसे सुखाया जाता है।

तो ये है साबूदाने की संपूर्ण जानकारी जो सच है तो उनको जवाब मिल गया होगा कि साबूदाना खाना चाहिए कि नहीं खाना चाहिए दोस्तों अगर आप इग्नोर करना चाहते है तो ये आप की चवाइस है। किसी भी तरह के प्रचार में पड़ कर साबूदाने को नॉनवेज ना समझें मांसाहारी ना समज़े क्योंकि भ्रामक प्रचार बहूत फैलाये जाते हैं ।

Post a Comment

0 Comments